उत्तराखंड

प्राइवेट स्कूलों में भारी फीस के दम पर सफलता नहीं पायी जा सकती

उत्तराखण्ड
21 अप्रैल 2025
प्राइवेट स्कूलों में भारी फीस के दम पर सफलता नहीं पायी जा सकती
आज देश में महंगी शिक्षा के प्रति एक आकर्षण बढ़ता जा रहा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकारी स्कूल किसी से कम हैं। शिक्षा के जिस आदर्श की स्थापना सरकारी स्कूल करते हैं वह महंगे स्कूलों में दिखायी नहीं देता। सरकारी स्कूलों में पढ़कर बड़े-बड़े अफसर बनकर सरकार के विभिन्न विभागों में अनेक लोग सेवा कर रहे हैं। शिक्षा गुरुकुल तथा पाठशालाओं से होकर ही आज तकनीकी एवं कम्प्यूटर तथा प्रोफैशनल संस्थानों तक पहुंची है। जिसका सम्मान किया जाना चाहिए। शिक्षा और हैल्थ सुविधाएं सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाना एक कर्त्तव्य है तो राष्ट्रवासियों के लिए​ शिक्षा एवं हैल्थ सुविधाएं एक अधिकार जैसा होना चाहिए। हैल्थ और एजुकेशन सुरक्षा किसी भी देश को महान बनाती है।

आज जिन डाक्टर भीमराव अंबेडकर को एक महान समाज सुधारक और संविधान निर्माता के रूप में जाना जाता है, उनकी स्कूली शिक्षा एक सरकारी स्कूल से ही हुई थी। जिस लोकतंत्र के लिए व्यवस्थाओं की बात उन्होंने की है उसी डेमोक्रेसी का दर्जा आज भारत को एक मंदिर के रूप में दिया जाता है। उन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई और भारतीय संविधान के निर्माण में जो भूमिका उन्होंने निभाई उस शिक्षा की बुनियाद सरकारी स्कूल ही था। इसी कड़ी में देश के मिसाइल मैन ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जो एक महान वैज्ञानिक रहे और भारत को एक मजबूत परमाणु राष्ट्र बनाने में उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई, उनकी शुरूआती शिक्षा भी सरकारी स्कूल में ही हुई थी। अनेक लेखक, सम्पादक व पत्रकार, नेता, कलाकार, बड़े-बड़े व्यक्तित्व सरकारी स्कूलों में ही पढ़कर आगे चलकर सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र में आज की तारीख में आइकॉन भी बनें।

मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि प्राइवेट स्कूल में या प्राइवेट संस्थानों में भारी फीस के दम पर या ज्यादा पैसे खर्च करके सफलता नहीं पायी जा सकती। ऊपर लिखे उदाहरण सिद्ध करते हैं कि कम पैसे में आप सरकारी स्कूलों में अच्छी लगन से पढ़कर नाम कमा सकते हैं। सरकारी स्कूलों का परिणाम चाहे वह सीबीएसई स्तर पर हो या कॉलेज स्तर पर वह सफलता के दृष्टिकोण से उच्च ही रहा है। इसीलिए मैं कहता हूं कि शिक्षा के मामले में महंगी फीस को महत्व देने के बजाए अगर सरकारी संस्थानों का रास्ता चुन लिया जाये तो वह बुरा नहीं है। कम्पिटीशन बढ़ रहा है यह बात अलग है लेकिन सच्ची मेहनत और लगन बहुत कुछ दे जाती है। यह एक फैशन सा है कि शिक्षा के नाम पर चाहे वह तकनीकी कोर्स है या कोई और प्रोफेशनल कोर्स या मेडिकल साइंस या आईएस या आईपीएस हर तरफ कम्पिटीशन है। मेहनत करने वाला सफल हो जाता है। मैंने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों से पढ़े सैकड़ों स्टूडेंट्स देखे हैं जो आगे चलकर आईएस बने या आईपीएस बनें। इसलिए सरकारी संस्थान जो प्रोफेशनल कोर्स पढ़ाते रहे हैं चाहे वह पॉलिटैक्नीक है या आईटीआई वे आज भी शिक्षा की आदर्श परिभाषा स्थापित करते हैं।
शिक्षा हर किसी का अधिकार होना चाहिए। ऐसे माता-पिता हैं जो ज्यादा पैसा नहीं दे सकते। सरकार ने उनके लिए स्कूलों में व्यवस्था कर रखी है क्योंकि वह महंगी नहीं है इसलिए मैं उसका स्वागत करता हूं लेकिन महंगी शिक्षा उन लोगों के लिए है जिन लोगों के पास संपन्नता है। आदर्श शिक्षा के दम पर गरीब लोगों ने मेहनत कर-करके किसी ने आईएएस तो किसी ने आईपीएस तो किसी ने कम्पिटीशन लड़कर खुद को सीए बनाया है।

सरकार से गुजारिश है कि देशभर में बच्चों के लिए हर आयु वर्ग के लिए शिक्षा मुफ्त होनी चाहिए। इस​िलए सरकार को देखना जरूरी है कि हर स्कूल की फीस ज्यादा न हो। ऊपर से महंगे स्कूल की किसी न किसी रूप में कुछ न कुछ डिमांड भी रहती है, सब बंद होनी चाहिए। स्कूल स्वच्छ वातावरण में ईमानदारी से चलने चहिए चाहे वे सरकारी हों या प्राइवेट। नर्सरी के बच्चों के अभिभावकों पर भी दबाव कम होना चाहिए

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