उत्तराखंड

22 को होंगे दर्शन, वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विराजित हुए रामलला

उत्तराखण्ड
19 जनवरी 2024
22 को होंगे दर्शन, वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विराजित हुए रामलला
अयोध्या। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का विधिवत कर्मकांड गणेश पूजन के साथ शुरू हो गया है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसी मान्यता के चलते शुभ मुहूर्त में दोपहर 1.20 बजे गणेश, अंबिका और तीर्थ पूजा की गई। इससे पहले दोपहर 12.30 बजे रामलला की अचल मूर्ति को उनके आसन पर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विराजित कराया गया। पहले दिन करीब सात घंटे तक पूजन चला। गुरुवार को मुख्य यजमान के रूप में अशोक सिंहल फाउंडेशन के अध्यक्ष महेश भागचंदका रहे।

काशी के आचार्य गणेश्वर द्रविड़ व आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित के निर्देशन में पूजन प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है। रामलला के अचल विग्रह को अभी ढक कर रखा गया है। मूर्ति के ऊपर चढ़े आवरण को नहीं हटाया गया है। मूर्ति 20 जनवरी को खोली जाएगी। गुरुवार को ढकी मूर्ति का ही पूजन किया गया है। रामलला के अचल विग्रह को पवित्र नदियों के जल से स्नान कराया गया। गर्भगृह स्थल और यज्ञमंडप का भी पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किया गया। पूजन के क्रम में ही राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला का जलाधिवास व गंधाधिवास हुआ।

अधिवास वह प्रक्रिया है जिसमें मूर्ति को विभिन्न सामग्रियों में कुछ समय तक के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि मूर्ति पर शिल्पकार के औजारों से आई चोट अधिवास से ठीक हो जाती है। तमाम दोष खत्म हो जाते हैं। जलाधिवास अर्थात जिस प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करनी है उसे शास्त्रीय विधि से एक निर्धारित समय तक जल में वास करना या रखना है। इसी प्रक्रिया के तहत अचल विग्रह को जलाधिवास कराया गया है।

इसके बाद शाम के समय गंधाधिवास हुआ इसमें श्रीराम की मूर्ति पर सुगंधित द्रव्यों का लेपन किया गया। अनुष्ठान के क्रम में ही यज्ञमंडप की भी पूजा हुई। मंडपपूजा के क्रम में मंदिर के तोरण, द्वार, ध्वज, आयुध, पताका, दिक्पाल, द्वारपाल की पूजा की गई। वहीं पांच वैदिक आचार्यों ने अनुष्ठान की कड़ी में ही चारों वेदों का पारायण भी शुरू कर दिया गया है। यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ऋगवेद का पारायण 21 जनवरी तक चलेगा।

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